Monday, 6 November 2017

मैं कौन हूँ , मैं क्या हूँ

मैं  कौन  हूँ , मैं  क्या  हूँ ,
इस  स्वाल  में  उलझ  गया  हूँ। 
हाँ  ज़िन्दा  हूँ , खड़ा  हूँ ,
मगर  ज़िन्दगी  की  खोज  में  कहीं  थम  गया  हूँ।।
मैं  कौन  हूँ , मैं  क्या  हूँ। 

मन्ज़िलों  की  राह  में , मैं  चले  जा रहा धर बदर ,
खुद  ही  को  तलाशने  में, आया  मैं इधर। 
काश  हो  कोई  ऐसा  जो  समझ  सके  मेरे  अल्फ़ाज़ों  को,
बोलने  से  पेहले  मेरे  समझ  सके मेरी  बातो  को।। 
शाम  भी  अभ  हो  चुकी, मैं  उसी  स्वाल  में  घिरा  हूँ ,
मैं  कौन  हूँ , मैं  क्या  हूँ। 

भटकते  भटकते  मैं  पहुँचा  नदी  के  किनारे ,
चाँद  की  रोशनी  में  जग  मगा  रहे  तारे। 
बैठ  कर  मुझे  ऐसा  एहसास  हो  रहा,
मेरे  साथ  साथ  में , ओर  भी  कोई  जो  अश्क  बिगहो   रहा।। 

रोने  वाला  कोई  ओर  नहीं,  वो  मेरा  ही  तो  साया  है ,
थामा  है  जिसने  मुझे  वो  मेरे  अंदर  ही  समाया  है। 
रात  को  मैं  खुद   ही  को  मैं  मिल  गया,
सही  या  गलत  बताने  वाला  साथी  मुझे  मिल  गया।।  

अपनी  मंज़िल  को  पाने,  मैं  अभ  आगे  बढ़  रहा  हूँ ,
अभ  मुझे  मालूम  है,  मैं  कौन  हूँ , मैं  क्या  हूँ

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